Friday, June 24, 2011

मैं हूं धनी प्यार की

मैं हूं धनी प्य़ार की


मैं ने देखा है इक सपना..
इस ओर सखा ' परमात्मा '
उस ओर ' कोरा दिल 'अपना
ऱो रोकर शुरू किया जपना ।

भूखा रहा,मैं भूखा रहा
दाल न भाता,माल न भाता
भाता बस प्यार ही प्यार
चाहता बस यार की प्यार .

'पर' पूछे-
“तू काहे को रोते पगले ?
मैं तेरे प्राणोँ के रखवाले
समझ ले , तू साथ है मेरे
फिर क्योँ रोते है रे प्यारे ?

दिल बोला,
“मुझे तो कुछ भी अच्छी नहीं लगती..
मुझे किसी भी प्यार न करती..
शिकायत है मुझे हंसी न आती
बस इतना है कि रुला आती .....

'पर' बोले-
“मैं हूं जग मैं पयार का सागर..
मुझे दिया है उसता अधिकार
बहने से ही बढ जाती है..वह-
रुकने से घट जाती है .

पहले तू प्यार कर लो अपने को,
फिर तू दान कर लो अपनोँ को
तेरा बचपन,तेरा यौवन,तेरा जीवन-
ये खुशी,तेरी जान प्रियवर को..

फिर देखो हंसी तेरी आंखोँ की
फिर सुनो बोली तेरी लवू की
कह उठेगी धडकन तेरे दिल की..
धनी हूं .. मैं..धनी..प्यार की...

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